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पाथेयम्_(जीवन रूपी यात्रा के लिए सुभाषित रूपी भोज्यसामग्री )_(Good saying as provisions for the journey of life)

1. पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम् ।   मूढैः पाषाणखण्ङेषु रत्नसंज्ञा विधीयते॥ १॥           यदि सत्संग्डतिरतो भविष्यसि भविष्यसि।           अथ दुर्जनसंसर्गे पतिष्यसि पतिष्यसि॥ २॥ हिंदी अनुवाद   पृथ्वी पर तीन रतन हैं - जल, अन्न और अच्छे कथन। मूर्खो के द्वारा ही पत्थर के टुकड़ों को रत्न नाम दिया जाता है। (१) यदि सज्जनो की संगती में लीन कल्याण के पथ पर बने रहोगे, अन्यथा दुर्जनों की संगती में आसक्त रहोगे तो अपने कल्याण के मार्ग मे भ्रष्ट हो जाओगे अर्थात गिरते ही चले जाओगे। (२) English Translation There are three gems on Earth - water, food, and good words. Stone pieces are named gems by fools. (1) If absorbed in the company of gentlemen, you will remain on the path of welfare, otherwise, you will remain engrossed in the company of the wicked, and you will become corrupt in your path of welfare,i.e, your will stop achieving anything in your life. (2) 2. गच्छन् पिपीलको याति योजनानां शतान्यपि। अगच्छन् वैनतेयोऽपि पदमेकं न ...

अविवेकः परमापदां पदम् _ (विवेक हीनता बड़ी आपत्तियों का स्थान होती है) _ (Lack of intellignce is a room of great difficulties)

  1. अस्ति उज्जयिन्याम् माधवः नाम विप्रः । एकदा तस्य भार्या स्वबालापत्यस्य रक्षार्थं तम् अवस्थाप्य स्नातुं गता। अथ ब्रह्माणः राज्ञा श्राद्धार्थं निमंत्रितः । ब्रह्माणः सहजदारिद्रयात् अचिन्तयत् - यदि सत्वरं न गच्छामि तदा अन्यः कश्चित् श्राद्धार्थं वृतः भवेत्। यतः                                                 आदानस्य प्रदान्स्य कर्तव्यस्य च कर्मणः।                                                 क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम् ॥ हिंदी अनुवाद  उज्जैन में माधव नाम का ब्राह्मण रहता था। एक बार उसकी पत्नी अपनी संतान की रक्षा के लिए उसको नियुक्त करके स्नान के लिए गयी। उसके बाद राजा ने ब्राह्मण को श्राद्ध के लिए आमंत्रित किया। ब्राह्मण अपनी स्वाभाविक गरीबी के कारण सोचने लगा - यदि शीघ्र नहीं जाऊँगा तो दूसरा कोई श्राद्ध के लिए आ...

तत् त्वम् असि _(तुम वही ब्रह्मा हो )_(You are that supreme being)

1. महर्षेः आरुणोः पुत्रः श्वेतकेतुः आसीत्। द्वादशवर्षीयं तं पुत्रं पिता आरुणिः उवाच - हे श्वेतकेतो ! गुरुं प्रति गच्छ अध्ययनार्थं यतः सौम्य ! अस्मत्कुलीनः अनधीत्य न भवति इति। सः पुत्रः आचार्यम् उपेत्य यावत् चतुर्विंशतिवर्षः अभवत् तावत् सः सर्वान् वेदान् सार्थान् अधीत्य पितुः सकाशम् आगच्छत्। सः च  'सर्वश्रेष्ठः अहम्' इति मन्यमानः उद्धतस्वभावः अभवत्।  हिंदी अनुवाद  महर्षि आरुणि का पुत्र श्वेतकेतु था। बारह वर्षीय उस पुत्र को आरुणि ने कहा - हे श्वेतकेतु ! गुरु के पास अध्ययन के लिए जाओ, क्योंकि हे सौम्य​ ! हमारे कुल वाला अनपढ़ नहीं होता। वह पुत्र गुरु के पास जाकर जब तक चौबीस वर्ष का हुआ तब तक वह अर्थ सहित सारे वेदों को पढ़कर पिता के पास आया। और वह 'मैं सबसे श्रेष्ट हूँ ', ऐसा अभिमानी स्वभाव वाला हो गया।  English Translation Maharishi Aruni's son was Shvetketu. Aruni told his twelve-year-old son - Hey Shvetketu! Go to the master to study, because our family is not illiterate. His son went to the Guru until he was twenty-four years old, and he came back to his father after r...